श्री समर्थ रामदास, श्री रामकृष्ण परमहंस, ईसामसीह आदि महापुरुषों के सान्निध्य में जो कोई विशेष लोग रहते थे, उन भाग्यवान लोगों को ही परम शिष्य, शिष्योत्तम तथा अंतरंग अनुयायी कहा जाता है। विगत २५ वर्षों से मजदूर नेता के रूप में विख्यात मा० दत्तोपन्त ठेंगडी भी वैसे ही भाग्यवानों में से एक हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के ३३ वर्ष के कर्तृत्व-पूर्ण कालखंड में उनके अत्यन्त निकटस्थों में थे श्री ठेंगड़ी जी। श्री गुरुजी से जिन्होंने अक्षरशः वरदान पाया है, जिनके सिर पर श्री गुरुजी का वरद हस्त था, ऐसे प्रमुख कार्यकर्ताथों में से मा० ठेंगड़ीजी एक हैं। श्री गुरुजी की असीम संस्कारक्षमता में ऐसे असाधारण कार्यकर्ताओं की परम्परा निर्माण हुई है। सद्यस्थिति में समाज ऐसे कार्यकर्ताओं के कर्तृत्व का मूल्यमापन कर रहा है। यह शुभ लक्षण ही मानना चाहिये ।
मा० दत्तोपन्तजी का शुभाभिनन्दन करते समय प्रथम यही शुभलक्षण मन में आता है । स्मारिका के सम्पादक मंडल की योजना से खासदार श्री दत्तोपन्त ठेंगड़ी (भू० पू० राज्य सभा सदस्य) का दर्शन कराने का काम मेरे जिम्मे था । लेकिन इतना कालखंड ही आपका समग्र जीवन दर्शन नहीं हो सकता। इस दृष्टि से उसमें से कुछ आवश्यक भाग ही देखेंगे।
मा० ठेंगड़ी जी व पूना से श्रो मोहन घारिया दोनों राज्य सभा में इकट्ठे ही प्रविष्ट हुए और दोनों की संसद-निपुणता का परिचय शुरू से ही मिल रहा था। साथ ही दोनों के गन्तव्य स्थान अलग हैं, इसका भी अनुभव हो रहा था। श्री मोहन धारिया जी का ‘सफर’ (आपके लिखे हुए ग्रन्थ का नाम) उनको ज्ञात है ही। उस विषय में और क्या लिखें ? लेकिन खासदार ठेंगड़ी जी के सम्पर्क में जो-जो व्यक्ति आया उस हरेक ने यह अनुभव किया कि यह व्यक्तित्व कुछ अलग ही है।
दीनदयाल बिरुद संभारी
उस समय मा० दत्तोपन्त जी ठेंगड़ी दिल्ली में साउथ एवेन्यू में रहते थे। इससे पहले भी आप कई बार खासदार प्रेमजी भाई आसर के आश्रय से रहे थे । अब आप खासदार नहीं हैं लेकिन आपके सम्बन्ध वहां कायम हैं।
साउथ एवेन्यू में एक नाई की दुकान है उसमें नट-नटणियों के चित्र नहीं हैं। वहां भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री फखरुद्दीन अली अहमद, भू० पू० स्थल सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी, भू० पू० विधि मंत्री श्री अशोक सेन आदि प्रमुख व्यक्तियों के चित्र लगे हुए हैं और उन्हीं के साथ एक और चित्र है अपने श्री ठेंगड़ी जी का ।
दीन दुखियों की सहायता करना- दीन दयाल विरुद संभारी यह उक्ति अपने दैनंदिन व्यवहार में सार्थक करने का यह अनुपम व्यवहार मा० ठेंगड़ी जी के साउथ एवेन्यू निवासकाल में कितने लोग अनुभव कर चुके हैं। उपरिनिर्दिष्ट केशकर्तनालय का मालिक एक पैगम्बर मोहम्मद साहिब का उपासक है। उससे मा० दत्तोपन्त जी के विषय में बात की जाय तो उसकी आंखों में कृतज्ञता तथा अत्यन्तिक आनंद से आंसू भर आते हैं। वह अभिमान से मा० ठेंगड़ी जी के संस्मरण बताने लगता है। वह कहता है कि वह फांसी के फन्दे पर चढ़ा दिया गया होता लेकिन मा० ठेंगड़ा जी की दुआ से बच गया । वह हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करता है “ठेंगड़ी जी को सदा सुखी रखो, चिरायु करो” ।
सभी लोगों का आदर स्थान
उपर लिखी हुई बात कुछ लोगों को अच्छी नहीं भी लगी हो लेकिन फिर भी यह प्रसंग इसलिये लिखा है कि चाहे ठेंगड़ी जी संसद सदस्य रहे या न रहे उनका स्वभाव या स्थायी भाव का पता चले।
मा० ठेंगड़ी जी के स्थायी भाव का आधार है उनकी अकृत्रिम आत्मीयता । इसी कारण केवल किताबों में पढ़कर (हाऊ टू विन फ्रैंड्स) आपको व्यवहार नहीं करना पड़ता। आपके अकृत्रिम आत्मीयता पूर्ण व्यवहार के कारण आप सदा ही सुहृदों से घिरे रहते हैं । इस स्वभाव के कारण आपको कई कष्ट उठाने पड़े हैं। साउथ एवेन्यू में आपके निवास स्थान के पूर्णतया मेहमानों से भरे रहने के कारण कई बार आप अपने ही निवास के किसी कोने में या बाहर लॉन में बिना कुछ ओढे हुए सोते देखे गये हैं। तेज बुखार में भी लेटे लेटे आपका सभी से मिलना-जुलना चलता रहता है। मिलने वालों को चाय नाश्ता भी कराया जाता है। आखिर कभी-कभी मेरे जैसे को विधि-निषेध एक तरफ रखकर मा० दत्तोपन्त जी की नाराजगी को भी नजरअन्दाज करके यह बीमारी में मिलना-जुलना, चाय-नाश्ता जबरदस्ती बन्द करना पड़ता था। फिर भी स्वयं के वहां से जाते हो यह सारा उद्योग फिर शुरू हो जाता था। उनका स्थायी-भाव दिखाई देता और अपनी हार । अनुभव होता है यह असाधारण व्यक्तित्व है। ऐसे अन्दर बाहर से स्वच्छ अकृत्रिम “पारदर्शक” सहज व्यवहार के कारण राजकीय मतभेद, पक्षभेद आदि दीवारें लांघकर सभी पक्षों के, सभी मतों के तथा सभी स्तरों के व्यक्ति आपके स्नेही तथा सहकारी भी हैं। चाहे वे डॉ० वी० वी० गिरि हों, श्री बी० डी० जत्ती हों या इन्दिरा कांग्रेस के श्री गुलाबराव पाटिल हों। सभी नामों का उल्लेख करना हो तो सहस्रनामावलि लिखी जायगीं ।
स्वयं वी०वी० गिरि की सूचना
उपराष्ट्रपति श्री गिरि के उल्लेख में एक बात याद आई। ई० सन् १९६२ में एक संसदीय प्रतिनिधि मंडल रशिया भेजना था। उपराष्ट्रपति श्री गिरी ने राज्य सभा अध्यक्ष के नाते सांसद श्री ठेंगड़ी जी से कहा कि आप वहां अवश्य जायें और वहां की परिस्थिति का अध्ययन करके उसकी सम्यक् जानकारी मुझे दें।
क्योंकि इसके कुछ ही दिनों बाद श्री गिरी स्वयं रशिया जाने वाले थे । संसदीय प्रतिनिधि मंडल में दूसरे अनेक सदस्य होते हुए भी उपराष्ट्रपति ने मा० ठेंगड़ी जी से ही रशिया जाने का आग्रह किया क्योंकि श्री गिरि मजदूर नेता थे। श्री ठेंगड़ी भी मजदूर नेता हैं। श्री गिरि को विश्वास था कि श्री ठेंगड़ी जी परिस्थिति का अवलोकन करके मुझसे विचार करेंगे वही श्री गिरि को उपयुक्त रहेगा। इससे पता चलता है कि मा० ठेंगड़ी जी ने कैसे-कैसे लोगों का विश्वास सम्पादन किया है। मा० ठेंगड़ी जी के इस रशिया प्रवास के दौरान इस संसदीय प्रतिनिधि मंडल में प्रकांड पंडित कम्यूनिस्ट नेता श्री हिरेन मुखर्जी भी साथ थे। इस यात्रा में दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों ही संस्कृत तथा अंग्रेजी वाङ्मय भक्त और दोनों के स्वभाव में समान ऋजुता ।
रशिया प्रवास इतने अल्प समय में तय हुया कि वहां की सर्दी की दृष्टि से आवश्यक नये कपड़े बनवाने का समय नहीं था और सांसद बनने के बाद भी आपका व्यवहार, रहन-सहन, पूर्ण सादगी का ही था। इसलिये नये-नये कपड़े और अलग-अलग जूते चप्पल आपके पास कहां तैयार मिलते। अपने किसी मित्र के गरम कपड़े, नाड़ वाले जूते वगैरे इकठ्ठे करके आप रशिया गये।
मार्क्सवाद प्रत्यक्ष देखा
रशिया प्रवास के बाद “जनता राज्य” में उस समय के केन्द्रीय श्रम मंत्री श्री रविन्द्र वर्माजी के आग्रह से श्री ठेंगड़ी अन्तर्राष्ट्रीय कार्य श्रम संगठन (आई०एल० ओ०) की बैठक में भारत के प्रतिनिधि के रूप में ठोस कार्य करके आये हैं। इस समय आप सांसद नहीं थे लेकिन विधायक विचारण वाले मजदूर नेता होने से आप जिनेवा में हुए इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में सम्मिलित हो सके। पहले रशिया प्रवास से भी अब के इस विदेश यात्रा से ठेंगड़ी जी की भाव-निधि में वृद्धि हुई। विशेषतः कम्यूनिस्ट रशिया के साथ अलगाव रखने वाले पूर्वी यूरोप के मार्क्सवादियों के मर्मस्थान पर अंगुली निर्देश करके आपने सहकारियों को भी चकित किया। सांसद के नाते आपने राज्य सभा में कितने प्रश्न पूछे या कितने भाषण दिये इससे भी अधिक महत्व इस बात का है कि आपने अपने अंगीकृत कार्य के लिये अपनी अनुभव निधि को कितना समृद्ध किया।
कांग्रेस पक्ष के वरिष्ठ सदस्य श्री जयसुखलाल हाथी जब केंदीय श्रम मन्त्री थे तब वे श्री ठेंगड़ी जी से अनौपचारिक रीति से औद्योगिक अशान्ति के बारे में विचार विमर्श करते थे। अपने निवास स्थान पर श्री ठेंगड़ी जी को बुलाकर घंटो तक बातचीत करके विचारों का आदान-प्रदान होता था ।
इन सब बातों से आपके व्यवहार का जो एक सूत्र दृढ सूत्र है उसकी झलक पाठक वर्ग को विशेषतः आपके चाहने वाले तथा समर्थकों को ज्ञात हो इसी उद्देश्य से यह लेख है।
स्थितप्रज्ञ श्री दत्तोपन्त जी
मा० दत्तोपन्त जी के जीवन का अर्ध-शतक ऐसे विविध अनुभवों से समुद्ध है पर उनमें से कुछ ही पहलू इस स्मारिका के माध्यम से सामने आयेंगे। आज की परिस्थिति में इतना कह सकते हैं कि अतिशय व अमर्याद परिश्रमों का परिपाक है मा० ठेंगड़ी जी। सतत संघर्षमय मजदूर संगठन ऐसा समीकरण जब दृढ था तब अपने अविश्रान्त परिश्रम व प्रतिभा से मजदूर संगठन को विधायक रूप देकर मजबूत नींव डालते समय भी ठेंगड़ी जी को विरोधियों से शारीरिक आघात भी सहने पड़े हैं। मा० डेंगड़ी जी ने यह बात शायद किसी से न कही हो। ये विरोधक पूँजीपति नहीं थे, तो भारतीय मजदूर संघ की सफलता से जिनके पैरों के नीचे से घरती खिसक गई थी ऐसे मजदूर नेता थे ।
देर रात तक मा० ठेंगड़ी जी कार्यवृद्धि के लिये घूमते रहते हैं । कुछ वर्ष पूर्व उनका पीछा करके अंधेरी रात में नागपुर की गलियों में उनपर हमला किया गया। लोहे की सलाख से आपको गरदन पर, कंधे पर चोटें आईं। हम सबके भाग्य से ही मा० ठेंगड़ी जो उस दिन बचे ।
एक समय के उनके सहाध्यायी, बाद में जो आपके पालक भी (आज दिवंगत) ऐसे व्यक्ति से विश्वसनीय रूप से पता चला इस घटना का। उल्लेख इसलिये किया है कि यह भी एक ईश्वरीय योजना थी, ऐसा सोचकर माननीय दत्तोपन्त जी ठेंगड़ी आध्यात्मिक दृष्टि से इस घटना को भूल गये होंगे लेकिन उनके सहकारी तथा समर्थक इस घटना से बोध ले सकते हैं।
श्री दत्तोपन्त जी के मन का संतुलन कभी भी बिगड़ता नहीं है । आप अनन्य साधारण है। स्थित प्रज्ञ हैं।
साभार संदर्भ |
श्रद्धैय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की षष्ठीपूर्ती केे अवसर पर भारतीय मजदूर संघ द्वारा प्रकाशित सत्कार समारोह-स्मृति स्मारिका में प्रकाशित 1981-82 में आदरणीय बापूराव जी लेले का आलेख। |