
“मुक्या मनाने किती उधळावे शब्दांचे बुडबुडे। तुझे पोवाडे गातील पुढती, तोफांचे चौघडे।” (अर्थ- मूक हृदय से कितने शब्दों के बुलबुले न्योछावर करें। आपका गौरवगान तो तोफों की गर्जना ही कर सकती है।) शाहीर गोविंद की उपरोक्त पंक्तियां मैंने माध्यमिक शाला में पढ़ी थी। आज जिनका पुण्यस्मरण है, वे कृतिवीर थे और उनके पुण्यस्मरण...