91 के बाद अभी तक लिये गये कार्यक्रम, अभियान, महत्वपूर्ण आन्दोलन, और महत्वपूर्ण एसे कुछ रचनात्मक आयाम जिसका प्रभाव बहुत दूरगामी है या रहेगा, ऐसा लगता है, ऐसे सारे विषयों को हम, बहुत संक्षिप्त में, एक बार सभी लोगों के सामने, सिंहावलोकन के नाते सामने लाना चाहिए।
आप सब जानते ही है, कि जब नयी आर्थिक नीति का आविर्भाव इस देश में हुआ, वैश्वीकरण की प्रक्रिया इस देश में आगे बढ़ाने की सोची गई, और साथ-साथ विश्व व्यापार के संघर्ष में गैट और डंकल प्रस्तावों के बारे में, पूरे विश्व में चर्चा चलना, उरूग्वे राऊण्ड ऑफ निगोशियेशन इस पर चर्चा करना प्रारम्भ हो गया, तो आप मान सकते है कि आर्थिक संरचना में परिवर्तन की जो बात 1991 में शुरू हुई, उसी समय स्वदेशी जागरण मंच का, जिसको आप अभियान कहते है, जागरण का जो बहुत बड़ा आयाम है, वह सामने आया। वह स्वदेशी जागरण मंच होना चाहिए, एसी कल्पना कई प्रमुख लोगों ने बैठकर की, दो-तीन बैठके हुई, इसकी चर्चा में पहले, एक बार तो हम कह सकते है कि मंच के आविर्भाव होने से पहले भारतीय मजदूर संघ ने इन्हीं बातों को लेकर कई दिनों तक चर्चा करते रहना, राष्ट्रीय अधिवेशनों में प्रस्ताव पारित करना और मजदूरों के क्षेत्र में विशेष गतिविधियां चलाने का प्रयास करना और उसी प्रकार, विद्यार्थी क्षेत्र में विद्यार्थी परिषद की ओर से भी विशेष इसी तरह की बातों को लेकर, आने वाली चुनौतियों के सन्दर्भ में, कुछ विशेष अभियान लिए गये, तो इन सारे अनुभवों के आधार पर सोचा, कि यह कोई लड़ाई बहुत, अल्पकालिक लड़ाई नहीं है और दूसरा कि यह लड़ाई कोई आंशिक लड़ाई भी नहीं है, लड़ाई बड़ी व्यापक रहने वाला है। नव पूंजीवाद से या उसकी साम्राज्यवाद की संकल्पना से, वैचारिक धरातल पर भी लड़ना पड़ेगा। इसलिए, अलग-अलग संगठन, अपने-अपने क्षेत्र में, लड़ने से इस लड़ाई को हम सफलता पूर्वक चला नहीं सकते है। इस दृष्टि से, सम्पूर्ण देश को, एक प्रकार से आजादी की लड़ाई मानते हुए, सभी प्रकार के लोगों को, वर्ग और श्रेणी, दल और दलविहीन इन सब बातों में नहीं जाते हुए, सबको साथ लेते हुए, सम्पूर्ण राष्ट्र को साथ लेकर चलना चाहिए, उस उद्देश्य से स्वदेशी जागरण मंच की प्रस्थापना या आविर्भाव हुआ है। इसको हम जानते है।
तो जैसे ही इस बात को एक वक्तव्य के माध्यम से हमने बाहर व्यक्त किया, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उस समय के सरसंघचालक परम पूजनीय बाला साहब देवरस की ओर से एक वक्तव्य आया, उस वक्तव्य में कहा कि ’देश को बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, और पड़ेगा और ऐसे में सभी लोगों को अपने मत और सम्प्रदाय या विचार इन सब को भूलते हुए, सब को साथ होकर, देश के सामने खड़ी चुनौती का सामना करना चाहिए’ ऐसा एक वक्तव्य आया, उस वक्तव्य को देख कर उस समय के कई प्रतिष्ठित नेता पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर ऐसे कई नेताओं ने स्वागत् करते हुए वक्तव्य दिया था।
तो स्वदेशी जागरण मंच के माध्यम से, इस सम्बन्ध में हम उस समय गैट, डंकल, उरूग्वे राऊण्ड ऑफ निगोशिएशन और वैश्वीकरण और विदेशी पूंजीनिवेश से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में हम समझाते थे, तो लोग कहते थे कि हम समझ रहे है, हम इस आन्दोलन में सहभागी बनना चाहते है, तो हम क्या करें? हमें क्या करना चािहए? हम क्या कर सकते है? क्योंकि सरकार की नीतियों पर दबाव बनाना चाहिए, सामुहिक रूप से आन्दोलन और जागरण करना ही चाहिए, किन्तु व्यक्तिगत स्तर पर हर एक व्यक्ति इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए क्या करें?
तो इस दृष्टि से सोचने के बाद, सबसे पहले एक वृहद अभियान लिया गया। वह अभियान 1991 में, वह अभियान, ’घर-घर जाकर के, स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं के बारे में, लोगों को जानकारी देना, और अपेक्षा रखना कि लोग अपनी देशभक्ति का दायित्व मानकर अपने देश की जो बचत है, वह विदेशी उद्योगों के निर्माण में, विदेशी रोजगार निर्माण के लिए उपयोग में नहीं लायें, हमारे देश की बचत जो अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारे पास भारी मात्रा में पूंजी उपलब्ध नहीं है, इसलिए बहुत सोच-समझ कर इसका उपयोग करना चाहिए’।
इस दृष्टि से विचार करते हुए हमने कहा कि ‘सहजता से या सामान्यतया हम बहिष्कार की बात सोचने वाले नहीं है, लेकिन एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था को इस देश और विश्व पर थौपने का प्रयास किया जा रहा है, इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को, थौपने वाले प्रयासों को अगर विफल करना है तो नागरिक के पास क्या विकल्प है?’
सरकार के ऊपर दबाव डालते रहेंगे, परिवर्तन के लिए लड़ाई भी लड़ते रहेंगे, लेकिन इसमें एक नागरिक की भूमिका क्या हो सकती है? तो कह सकते है कि ’नान-कॉपरेशन मूवमेन्ट’-’असहयोग आन्दोलन’ यानि विदेशी वस्तुओं का उपभोग नहीं करना, ताकि बताना कि आपकी शौषण की जो व्यवस्था है, अन्याय है, उसका विरोध करते है, तो इस दृष्टि से पहला अभियान, यानि वृहद् अभियान हमने लिया स्वाभाविक है, उस समय की परिस्थितियों में, बहुत बड़ा संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, ने इस अभियान को समर्थन करना तय किया।
सम्पूर्ण संगठन उसमें लगेगा, ऐसा भी तय किया और सारे स्वयंसेवक उसके लिए काम करेंगे, यह तय किया। और साथ में, जो भी महत्वपूर्ण, राष्ट्रवादी संगठन, अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते है, भारतीय मजदूर संघ है, भारतीय किसान संघ है, विद्यार्थी परिषद है, वनवासी कल्याण आश्रम है, और विद्यााभारती है, ऐसे सारे संगठनों ने तय किया कि इस अभियान में हम भाग लेंगे, तो इस कारण से, जन्म क्या हुआ स्वदेशी जागरण मंच का, कुछ ही दिनों के अन्दर देश भर में बड़ा चर्चित आन्दोलन बन गया।
क्योंकि सारे लोग जानने लग गये कि, इतने कम समय में, देशभर के इतने गांवों में और इतने लोगों तक पहुंचने की क्षमता, स्वदेशी आन्दोलन के पास है, तो फिर इस विषय पर सम्पादकीय लिखना, अनेक लेख-आलेख आना शुरू हो गया। तो इस पृष्ठभूमि में एक विशेष अभियान से हमने स्वदेशी आन्दोलन को प्रारम्भ किया।
उसके बाद कुछ बैठके और कुछ कार्यक्रम और कुछ आगे बढ़ाना चाहिए, ऐसा सब चलाते रहे, लेकिन आप कह सकते है कि, स्वदेशी जागरण मंच का पूर्ण अभियान लिया है, तो फिर से 93 में, दिसम्बर में हमने वृहद सम्पर्क अभियान लिया, स्वदेशी जागरण मंच के नाम से, अगर जिसे आप कह सकते है, पहले तो दत्तोपन्त जी कहते थे, उस अभियान को ’फर्जी अभियान’ याने ’बोगस अभियान’ याने स्वदेशी जागरण मंच का तो बेनर है, लेकिन काम और योजना किसने बनाया, तो बाकी संगठनों ने बताया, लेकिन 93 आते-जाते, कुछ संरचना हमारी बनी, कुछ साहित्य हमने प्रकाशित किया, और 1993 के अभियान के लिए, मुद्दे हमने केन्द्रीय स्तर पर तय किये। स्वदेशी जागरण मंच ने तय किया, एक तरफ गांवों में ग्राम सभा करना, घर-घर सम्पर्क विशेष नहीं, घर-घर सम्पर्क कर सकते है तो करिये, लेकिन, इस बार हमने तय किया कि हमें सामुहिक कार्यक्रमों की ओर जाना चाहिए। इसलिए ग्राम-सभाओं का आयोजन करना, और उसमें वैश्वीकरण और डंकल प्रस्तावों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करना और साथ में यह भी विचार किया कि, स्वदेशी संसाधनों का ब्यौरा एकत्रित करना, याने जंगल की क्या स्थिति है, तालाब की क्या स्थिति है, और पशुधन की क्या स्थिति है, अर्थात जिस स्वदेशी को हम जीवित रखना चाहते है, सक्रिय रखना चाहते है, जिस स्वदेशी पर देश चल रहा है, ऐसा हम मानते है, उसकी वर्तमान स्थिति क्या है? तो जानेवाले कार्यकर्ता केवल कुछ देने नहीं जाऐंगे, इस अभियान में कुछ लेकर आयेंगे, इस प्रकार से विचार करते हुए, फिर से संघ और संगठन, और बहुत सारे कार्यकर्ता और अपना पूरा 15 दिन का समय, एक माह का समय आप कह सकते है कि स्वदेशी आन्दोलन के लिए, बड़े संगठित तरीके से, बड़ा वृहद अभियान अगर हुआ है, तो वह 93 में हुआ। और उसमें, उस अभियान में, हम एक लाख तिरासी हजार ग्रामों में, सम्पर्क किया, ग्राम सभाओं का आयोजन किया, और इन सारे कार्यक्रमों का आयोजन किया और आप यह कह सकते है, उसी समय से कार्यकर्ताओं का, जिसको आप कहेंगे ’दृष्टिकोण’ वस्तुओं का बहिष्कार तो रहेगा ही, आवश्यक है, लेकिन स्वदेशी का जो व्यापक दृष्टिकोण है, व्यापक आयाम है, और संसाधनों के बारे में और विकास के बारे में कुछ नजरिया है, यह निचले स्तर पर भी कार्यकर्ताओं ने समझने का प्रयास किया है।
बड़ा प्रभावी रहा अभियान, और 94 में अभियान को करते समय, पहली बार बड़ा प्रयास पूर्वक कार्य किया, उसमें देश के बहुत सारे समाजसेवी, बहुत सारे राजनैतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित लोग, जैसे नारायण भाई रेटा और डांगे की पुत्री रोजा देशपाण्डे (Roza Vidyadhar Deshpande), और जॉर्ज फर्नाडीज, श्री चन्द्रशेखर, श्रीमति मेनका गांधी, और इस प्रकार के जितने लोग है जिनका मेने नाम लिया है, मैं कह रहा हॅू, ये सारे लोग, जैसा सभी जानते है, उस समय राम जन्मभूमि आन्दोलन समानान्तर रूप से चल रहा था और कुछ घटनायें घटी थी, इस कारण से राम जन्मभूमि के मुद्दे पर, ये सारे लोग विरोध कर रहे थे, और ये यह भी जानते थे, कि स्वदेशी जागरण मंच, संघ से जुड़ा हुआ आन्दोलन है, उसके बावजूद हम समझाने में सफल हुए, कि ‘देश के हित में अन्य मुद्दों को आगे मत लाईये, और संकुचित राजनैतिक दायरों में हम नहीं सोच सकते है, तो इस आधार पर, बहुत सारी संख्या में, प्रदेश और देश स्तर पर समाजसेवी, सर्वोदय के, समाजवादी पार्टी के, स्वतन्त्र रूप से स्वयंसेवी संगठन चलाने वाले लोग और राजनैतिक पार्टियों केे नेता, इस प्रकार के भूतपूर्व कम्यूनिष्ट वामपंथी और श्रमिक आन्दोलन में हिन्द मजदूर सभा, और इस प्रकार के कई प्रकार के लोग हमारे मंच पर आये। तो इस अभियान के समाप्त होते-होते हमने तीन-चार चीजें प्राप्त की। एक, अखिल भारतीय स्तर पर, आन्दोलन को आगे बढ़ाने की क्षमता और इच्छा रखने वाला आन्दोलन, स्वदेशी जागरण मंच है। ऐसा लोगों के सामने हमने उसको प्रस्तुत किया। दूसरा, स्वदेशी आन्दोलन में, संकुचित दायरों में, दल और संस्थाओं के अन्दर, अपनी-अपनी विचारधाराओं के लिए, मंच खोल कर रख दिया ऐसी धारणा ना लेते हुए, सम्पूर्ण देश के बारे में सोचने वाले सभी लोगों को, अन्य किसी भी विषय पर मतभेद हो सकता है, ऐसे सभी लोगों को, इसमें लाने का हमने सफलता पूर्वक प्रयास किया, जिसके रहते हुए, लोगों के मन में, विश्वास आया कि, एक सही और रचनात्मक प्रयोग हुआ है, और हमारी क्रेडिबिलिटी के बारे में, लोगों में, यानि बहुत प्रयास हुए है, बहुत पूर्वाग्रहों के कारण इसमें नहीं जाना चाहिए, आप कैसे जा रहे हो, इस प्रकार के दबाव बहुत लोगों पर आये, लेकिन हम एक बात कह सकते है कि हमारे गम्भीरतापूर्वक जो प्रयास रहे, उसको देखते हुए, सारे ईमानदार लोग, देश के लिए सोचने वाले लोग, अपने मंच पर आये और तीसरा, इस अभियान में हमारे जो कार्यकर्ता लगे थे, उनके आत्मविश्वास में कुछ बढ़ोतरी हुई, कि संसाधनों की वर्तमान स्थिति के बारे में, लोगों के नजरियों के बारे में, जब गांवों में सभाऐं की और स्वदेशी जागरण मंच के नाम पर आम सभा करना, नुक्कड़ मेें कार्यक्रम करना, परन्तु हॉल में नहीं करना। इस प्रकार के हमने कई प्रयास किये है तो तीसरा यह महत्वपूर्ण अभियान जिसको आप ’बिंग बैंग’ प्रोग्राम कह सकते है, यह हमने किया।
हम सब जानते है कि सारे संगठन के कार्यकर्ता, सब अपनी संस्थाओं के काम को बन्द करके जब सहयोग करते है, तो गुब्बारें के जैसे बहुत बड़ा कार्यक्रम हम देश भर में करते है। जब वापिस वह, अपने-अपने संगठनों में चले जाते है, तो हम थोड़ा ढ़ीला पड़ जाते है, लोगों को भी डाऊट आता है, अच्छा यह कोई समझौता हो गया होगा, नहीं तो यह कमजोर कैसे हो रहे है। कमजोर करने की इनकी रणनीती है, कोई अन्दरूनी समझौता हुआ होगा। ऐसी बातें भी बहुत लिखी गई। तो अधिवेशनों और सभाओं की भी परिकल्पना शुरू होने के बाद, हमने जो राष्ट्रीय सम्मेलन कलकत्ता में किया, उसके बाद तय हुआ, वहीं पर घोषणा कि गयी कि, जो हमारा स्वरूप बना है, जो हमारी छवि बनी है, और उसी छवि को हमे, सुदृढ़ करना है, लोगों की आकांक्षाओं को हमे घनीभूत करना है, तो उसके लिए हमारे आन्दोलन के बारे में विविध आयामों को आगे बढ़ाना चाहिए। उस दृष्टि से वहां पर, महत्वपूर्ण दो-तीन कार्यक्रमों की घोषणा की, वह बड़ी ऐतिहासिक लड़ाईयाँ सिद्ध हुई। वैश्वीकरण के विरूद्ध इस देश में जो लड़ाईयाँ लड़ी गई, उसमें बड़ी महत्वपूर्ण लड़ाईयाँ है।
उसमें पहला कार्यक्रम है ’एनरॉन आन्दोलन’ एनरॉन संयन्त्र, एनरॉन बड़ा साधारण विषय है, ऐसा आजकल लोगों को लगता है, लेकिन उस समय ’एनरॉन वॉज द फ्लेगशिप कम्पनी फॉर द फॉरेन इन्वेस्टमेन्ट प्रोग्राम’ यानि विदेशी निवेश पर देश का विकास, हम करेंगे, और करना चाहते है ऐसा सोचने वालों के लिए, एनरॉन केवल बहुत सारे कार्यक्रमों में से एक कार्यक्रम नहीं था, यह ’फ्लेगशिप स्कीम’ था इसलिए बड़े मुद्दे चले। विदेशी निवेश क्यों चाहिए?, ऊर्जा की हमारी क्या स्थिति है?, क्या विकल्प है?, देशी विकल्प क्या हो सकते है?, बड़े यानि ’एनरॉन स्ट्रगल एक डिसकोर्स था’ एक डिबेट था, और सम्पूर्ण देश में उस बहस को हमने आगे बढ़ाया, दो प्रकार से आगे बढ़ाया, देखों केवल सैद्धान्तिक विषयों पर चर्चा करने से लड़ाई देशभर में तो चल नहीं सकता, इसलिए हमने सोचा, वैश्वीकरण के विरोध में, मूर्तिमान मुद्दे क्या हो सकते है, जिसको पकड़कर लड़ने से देश खड़ा हो सकता है।
तो बड़ा उपयोगी मुद्दा ध्यान में आया ’एनरॉन और एनरॉन मुद्दे को स्वदेशी जागरण मंच ने चलाया, ऐसे मुद्दे कई अन्य लोगों ने अनेक स्थानों पर चलाया, जैसे कारगिल के विरोध में आन्दोलन जार्ज फर्नाडीस ने चलाया, सफल हुए उसमें, तो एनरॉन, केवल हमारे लिए ही नहीं तो सम्पूर्ण देश के लिए एक अध्याय है, तो हमने बड़े बौद्धिक दृष्टि से इसका अध्ययन किया, एक डॉक्यूमेन्ट बनाया ’एनरॉन देश के हित में नहीं है’ हमने ऐसी कोरी नारे-बाजी नहीं की, बड़ा अध्ययन करते हुए, काम करते हुए हमने डॉक्यूमेन्ट बनाया, लाया और उस आन्दोलन को हमने जमीन पर नेतृत्व देना शुरू किया, रत्नागिरि जिले में, जहां लड़ाई जमीनी स्तर पर हो रही थी और महाराष्ट्र में सरकार के विरोध में शरद पंवार की सरकार के विरोध में, एनरॉन को केन्द्र बिन्दु बनाकर एक जबरदस्त जन-आन्दोलन हमने प्रदेश भर में चलाया, जिसका नेतृत्व स्वदेशी जागरण मंच ने किया, बहुत सारे लोग सहयोगी थे, समाजवादी और सर्वोदयवादी, सारे लोग जुड़े लेकिन आन्दोलन को एक-एक कदम आगे बढ़ाने का काम स्वदेशी जागरण मंच ने किया, यानि नेतृत्व करने का कार्य मंच ने किया और इसके कारण, उस समय ’फास्ट ट्रेक प्रोजेक्टस’ जो इलेक्ट्रिसिटी के लिए, कोई सात-आठ की संख्या में, परिकल्पना चल रही थी, जिसमें एनरॉन एक थी, ’कॉजेस्ट्रिक्स’ कर्नाटक में आ रही थी। इस प्रकार की कई कम्पनियों को लाने का एग्रीमेन्ट आंध्र में भी हुआ था, तो एनरॉन को हम लोगों ने जैसे ही लड़ाई का मुद्दा बनाया, तो विदेशी निवेश का रफ्तार, धीमा हो गया कि जरा सावधानी से देखा जाए, देश और समाज, इस पर क्या संकेत देता है, इसको समझा जाए, उसके बाद निवेश करना या नहीं करना देखेंगे, ऐसा निवेशकों को लगा।
धीरे-धीरे रफ्तार बिलकुल बन्द हो गया, तो पूरे देश के वैश्वीकरण के विरोध में, स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाने वाला समाज का आन्दोलन, जिसका नेतृत्व हमने किया लेकिन लड़ाई समाज ने लड़ी और समाज ने जो लड़ाई लड़ी वह कोई साधारण लड़ाई नहीं थी। आज नन्दीग्राम की लड़ाई आम आदमी लड़ रहा है, मामूली बात नहीं है, कि जमीन की कीमत पांच लाख, दस लाख प्रति एकड़ तय कर दे, फिर भी यह कहना कि हमें नहीं चाहिए, रत्नागिरी के किसानों ने ’हमें नहीं चाहिए’ कह कर यह लड़ाई लड़ी और हमने नेतृत्व किया, और कुल मिलाकर इस लड़ाई को वैश्वीकरण के विरोध में, जैसे नन्दीग्राम के सम्बन्ध में आज जैसा बहस चलती है, उससे भी ज्यादा प्रभावकारी, एनरॉन आन्दोलन था क्योंकि वह शुरूआत थी।
तो आन्दोलन को चलाने में, उठाने में, नेतृत्व देने में, लोगों को उस पर चर्चा में खींचने में, हम सफल हुए। इसकी घोषणा हमने कलकत्ता अधिवेशन में किया कि हम इसको पकड़ेंगे और इस पर हम लड़ेगे, फिर इस पर हम निर्णायात्मक लड़ाई लड़ेगे, हम इस पर आगे बढ़ेगे, इस लड़ाई की भी कहानी है अब इस कहानी का सब कुछ सामने आया, कि इस लड़ाई के ’ग्रे’ एरिया भी है, कि जिन राजनैताओं के सहयोग से हम इस लड़ाई में आगे बढ़े, उनकी सरकार आने के बाद, उन्होंने एनरॉन के साथ समझौता किया और देश को गुमराह करने का प्रयास किया, कहा कि एनरॉन समझौते के जो गलत आयाम है उन सबकों परिष्कृत करके, हमने समझौते को राष्ट्रहित में बनाया। तेरह दिन की सरकार, कोई एक निर्णय किया है तो जब केबीनेट की बैठक हुई तो, बड़ा अपमानजनक विषय है।
13 दिन की सरकार, और उसमें अगर एक केबिनेट मीटिंग हुई और उसमें कोई एक निर्णय हुआ, अल्पमत की सरकार, जो संसद में विश्वासमत का प्रस्ताव हार गई, लेकिन एनरॉन के समझौते पर केन्द्र सरकार ने अनुमति दी, रिव्यु बिल, तो इससे जन आन्दोलन को जबरदस्त धक्का लगा, लेकिन भगवान सच्चाई के पक्ष में रहते है, सच्चाई की जीत हमेशा होती है, सच्चाई की जीत को कोई रोक भी नहीं सकते है। इसलिए, एनरॉन के जितने पहलू थे, उसकी कीमतों की दृष्टि से, उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर की दृष्टि से, कम्पनी के प्रोफाइल की दृष्टि से, उस कम्पनी की क्रेडिबिलिटी की दृष्टि से, वह सब जितने भी उठाने की कोशिस करे, उसको उठाने के लिए, अपने पाले से पाला-बदल कर के कोशिस किया, लेकिन अन्त में हुआ यह कि, एनरॉन हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे, के अन्दाज में यानि जिन लोगों ने एनरॉन का समर्थन दिया, उनके मुंह पर तमाचा लगाते हुए, डूब गया। हमारे आन्दोलन के अप्स एण्ड डाऊन्स भी रहे, हमारे लिए दिक्कतें भी रही। हमारे लिए चुनौतियाँ भी रही, लेकिन हमारे चरित्र, लड़ाई के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, जनहित और राष्ट्रहित के प्रति हमारी प्रतिबद्धता, इस बारे में, स्वदेशी नेतृत्व के बारे में, लोगों में विश्वास भी पैदा हुआ।
हमारी कमजोरियाँ भी सामने आई होगी, लेकिन ’ये लोग अपने-पराये के लिए नहीं, राष्ट्रहित के लिए लड़ेंगे’ यह भी इसी संघर्ष ने स्थापित कर दिया।
तो हमने इसे कलकत्ता अधिवेशन 1995 से प्रारम्भ किया, मूर्तिमान मुद्दो पर आन्दोलनों की घोषणा कलकत्ता सम्मेलन में की गई कि आखिर दूर रहने वाले मुद्दों के बारे में केवल जागरण से नहीं चलेगा, कुछ मुद्दों को पकड़ कर वैश्वीकरण के विरूद्ध लड़ाई को लड़ना है, इस घोषणा के बाद इस संघर्ष को आगे बढ़ाया और यह संघर्ष 3 साल, 4 साल, 5 साल चला ।
दूसरे कार्यक्रम की, वहीं हमने घोषणा की वह है, ’पशुधन संरक्षण’, विकास और खेती के संकट को हमने उसी समय भांपते हुए कहा कि पशुधन का जो अनुपात है, वह बहुत घटता जा रहा है, और जो यांत्रिक कत्लखानों को खोलनें के प्रयास सरकारों की ओर से हो रहे है, कल्पना करो कि कितने कीमती पशुधन को, चाहे वह गाय है, या बैल है, या साण्ड है, जो केवल घास अथवा कृषि-अवशेष खाकर पूरे देश को दूध, दही, मक्खन और कृषि के लिए अनन्त मात्रा में खाद तथा बैल-जोतने वाले कीमती पशुधन को आप बड़े सस्ते दामों में, अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में, पशु को काट करके कारखानों में, उसको पैक करके ’मिडिल ईस्ट’ में एक्सपोर्ट करना, क्यों? ’एक्सपोर्ट सेंट्रिक इकोनॉमी, एक्सपोर्ट सेंट्रिक ग्रोथ’ किसी भी कीमत पर एक्सपोर्ट को बढाना, यह जो चल रहा है, ऐसा ही चलता रहा तो भारत के किसान और भारत की कृषि पर संकट खड़ा होगा।
यह कोई साधारण पशु बचाने वाली बात नहीं है, इसलिए ’अल-कबीर’ जो आन्ध्र में यांत्रिक कत्लखाना खोला गया था, उसके विरोध में स्वदेशी जागरण मंच की ओर से, स्वयं मैं अखिल भारतीय संगठक के नाते, सेवाग्राम से, वर्धा में जो सेवाग्राम है, सेवाग्राम से अल-कबीर तक की पदयात्रा की, एक महीने के लगभग पदयात्रा, साढे सात सौ कि.मी. की पदयात्रा, और अन्त में जब वो, रूद्रारम या मेठक जिले में हमने गिरफ्तारी दी, तो कई सांसद, कई पार्टियों के नेता और हजारों की संख्या में, कोई 10-12 हजार की संख्या में गिरफ्तारी, हमने दी।
तो स्वदेशी आन्दोलन को शार्पनिंग का काम, धार देने का काम, तेजगति देने का काम, स्वदेशी को केवल जागरण और चर्चा और संगोष्ठी के लिए नहीं, ’सड़क पर लड़ेंगे’ इस प्रकार के आयाम देने का काम हमने ’पशुधन संरक्षण यात्रा’ से किया। वहीं हमने एक और घोषणा की, तीनों बड़े महत्वपूर्ण आयाम है, हमने कलकत्ता सम्मेलन में ही घोषण की और उस समय सच में देखा जाए तो, रैली निकालने में नारे देने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या भी हमारे पास पर्याप्त नहीं थी। अनुभव नहीं था, मंच पर भाषण देने वाले लोगों की संख्या भी पर्याप्त नहीं थी, लेकिन समाज में ताकत है। जब समाज के मुद्दों पर लड़ेंगे तो समाज आपके साथ आयेगा और जो-जो आपमें कमियां है, उससे सम्पन्न बना देगा। तो इसलिए हमने यह तय किया।
तीसरा महत्वपूर्ण निर्णय जो हमने वहां लिया वह है ’सागर यात्रा’ वह बड़ी ऐतिहासिक यात्रा है, मुझे लगता है कि देश में कभी गत सैकड़ों वर्षों के इतिहास में ’सम्पूर्ण सागर की यात्रा करना’, नाव में बैठकर और हर तट पर, हर गांव में सभा करते हुए नाव को आगे बढ़ाते जाना और यात्रा करना यह वास्तव में एक अभूतपूर्व आन्दोलन था।
क्या हुआ कि मछुआरे विवश हो रहे थे। वैश्वीकरण के संकट से उत्पन्न बेरोजगारी के कारण विवश हो रहे थे, क्योंकि केंद्र सरकार, समुद्र की गहराई में मछली पकड़ने का काम, विदेशी कम्पनियों को और यांत्रिक पद्धति से मछली पकड़ने वाली कम्पनियों को, ’मेकेनाइज्ड फिशिंग’ करने वाली कम्पनियों को लाईसेन्स दे चुकी थी और अन्धाधुन्ध रूप से, हर तरफ, अनाप-शनाप, भारी मात्रा में मछली पकड़ना और इस प्रक्रिया में जो मछलियाँ और समूद्री जीव मर जाते उनको समुद्रतटों पर फैंकना, इस तरह मछुआरों की सारी आबादी के लिये प्रदुषण, बैरोजगारी और अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया था।
तो हमारे पास मछुआरों में कार्यकर्ताओं की बड़ी टोली या नेटवर्क था, ऐसा नही था। कोई संगठन था, ऐसा भी नहीं था। कोई इकाईयाँ थी, ऐसा भी नहीं था। हम जैसे लोगों ने, यह मुद्दा है, देश का मुद्दा है, इसके लिए लड़ना है, यह तय किया। तो कल्पना करों कि, एक तरफ दो हजार, एक तरफ तीन हजार किलो मीटर की नाव यात्रा करते हुए, त्रिवेन्द्रम में हमने अन्तिम कार्यक्रम किया, और फादर थामस कचोरी ने नेतृत्व में, कुलकर्णी के नेतृत्व में, मजदूर संगठनों की लड़ाई, जो लड़ाई वह चल रही थी, हम देश की लड़ाई के नाते इसे उभारने में सफल हुए।
बड़ा विचित्र है, कई बार आपको लगता है, अल-कबीर का आन्दोलन करते समय कई जैन-समाज के लोग, अल-कबीर के विरोध में हमारा समर्थन कर रहे थे, वो कहते थे, आप मछुआरों की लड़ाई क्यों लड़ रहे हो?, क्योंकि वे शाकाहारी है, इसलिए, ’राष्ट्रहित इस नाते हमने इस लड़ाई को लिया और अन्त में उसमें हमने सफलता प्राप्त की।’और लाईसेन्सेज को रद्द करना पड़ा और उसमें मुरारी कमेटी ने रिपोर्ट दी। उस मुरारी कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार को विवश होकर, क्योंकि पूरे समुद्र तट पर मछुआरों का जो समाज है वह संगठित हो गया, एकत्र आ गया। उसमें इसाई, मुसलमान सब साथ आ गये। स्वदेशी जागरण मंच इन सब को साथ ले जाने में, सफल हुआ। हमने अलग से, हमारा नेतृत्व चलाने का कभी प्रयत्न नहीं किया, तो हम इसमें सफल हुए। तो इस प्रकार से जिन मुद्दों के माध्यम से वैश्वीकरण के विरोध में लड़ाई को खड़ा करना था, हमने उन विषयों को आगे बढाना शुरू किया।
फिर बाद में अभियान पर अभियान हम लेते गये। फिर बीड़ी वालों के लिए भी हमने अभियान लिया, कि जो बीड़ी बनाने वाले लोग, हम सब जानते है, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तो इतने प्रान्तों में जो तेंदुपत्ता है, उससे बीड़ी बनाते हुए, कितनी महिलाओं का रोजगार, तो आई.टी.सी. है, बड़ी कम्पनियाँ है, ’मिनी सिगरेट’ के लिए परमिशन मिल गया, उनके साथ कम्पीटिशन तो ऐसे में, हमने कहा कि यह नहीं चलेगा। इतने सारे रोजगार समाप्त करके कैसे चल सकता है? और इसके लिए हमने ’बीड़ी रोजगार रक्षा आन्दोलन’ चलाना शुरू किया और इसके लिए समन्वित प्रयास हमने प्रारम्भ किये और ये प्रयास भी सफल हुए। सारे आन्दोलनों में हम सफल हुए और उसको हम बचाने में सफल हुए। तो इस प्रकार से, मुद्दों को उठाते हुए, आन्दोलन चलाने का काम हम आगे बढ़ाते गये।
आप सभी जानते है कि राष्ट्रीय जन-तांत्रिक गठबन्धन सरकार के समय बीड़ी का भी हुआ, बुनकरों का भी आन्दोलन चलाया, बुनकरों के विषय में भी, किस प्रकार से डब्ल्यू.टी.ओ. से अथवा अन्य कारणों से भी, किस प्रकार से समस्या आ रही है, इस विषय पर, हमने बहुत स्थानों पर बैठकें की, फिर हमने इन्हीं विषयों को आगे बढ़ाते हुए लगातार एक के बाद एक लघु उद्योगों को बचाने के लिए, इसमें कई मुद्दे है, कि उसका जो केपिटल लिमिट है, वह क्या होना चाहिए, तीन करोड़ होना चाहिए, कोई कहता है पांच करोड़ होना चाहिए। सभी छोटे प्रोजेक्ट है, उसको समाप्त करने के लिए, कि उसको लाभ न मिले, इस दृष्टि से, हमने लघु उद्योगों की लड़ाई को भी हाथ में लिया, और सम्पूर्ण देश में लघु उद्योगों के जो संगठन है, सारे संगठन, सभी के नेता हमारे साथ आये, तमिलनाडु में दक्षिण में उनके साथ हमारी मीटिंग हुई, उत्तर में, पश्चिम में हमारे साथ मीटिंग हुई, लघु उद्योजकों के आन्दोलन को हमने लगातार चलाया, ऐसे बहुत सारे मुद्दे है उसमें, रिजर्वेशन, डि-रिजर्वेशन के विषय में हमें सफलता उस सेंस में नहीं मिली, लेकिन लड़ाई को तो हमने आगे बढ़ाया और बहुत सारे विषयों को रोक कर रखने में, जिस गति से वो उनको खत्म करना चाहते थे, उसको रोक कर रखने में हम सफल हुए।
इस प्रकार बुनकरों के मुद्दे है, लघु उद्योगों के मुद्दे है और ट्रांसपोर्ट इस देश में आप जानते है, मोंटेक सिंह अहलुवालिया नाम के व्यक्ति है, पार्टियां कुछ भी हो तो, सत्ता में हमेशा रहते है, एन.डी.ए. सरकार में वह एडवाइजर थे, प्लानिंग कमीशन के मेम्बर थे, यू.पी.ए. सरकार में अभी वो प्लानिंग कमीशन के वाइस-चेयरमेन है, तो उन्होंने एक रोजगार पर रिपोर्ट बनाया, और उसमें उन्होंने विदेशी निवेश की तार्किकता को बढाते हुए, उन्होंने कहा कि ट्रांसपोर्ट सेक्टर को भी ग्लोब्लाइज करना चाहिए, इट इज डॉमिनेटेड बाई वेरी स्मॉल, इसलिए इकॉनोमिकल नहीं चल रहा है इसलिए इसको कैसे ग्लोब्लाइज करना चाहिए और पोल्ट्री के विषय में, जिनके पास मुर्गीपालन है, वे जानते है, कि अमेरिका में जो मुर्गा खाते है, आप लोग यहां कोई मुर्गा खाते है तो जानते है, नहीं जानते है तो पता कर लीजिए कि अमेरिका में जो मुर्गा खाते है, तो वो ’ब्रेस्ट चिकन’ खाते है, ब्रेस्ट चिकन याने टांग नहीं खाते है, हाथ नहीं खाते है, वो ब्रेस्ट यानि बीच वाला हिस्सा है, वह खाते है, भारत के लोग जो है, टांग और हाथ वाला हिस्सा है वह खाते है, इसलिए बड़ा ’कॉम्पलिमेन्ट क्वालिटी’ देखा अमेरिका ने, सोचा कि हम ब्रेस्ट चिकन खायेंगे और टांग समुद्र में फेंकते है, उसका कोई कीमत नहीं है और इसी को भारत में लोग बड़ा पसन्द करके खाते है, इसलिए इसको हम भारत को एक्सपोर्ट करेंगे और अब भारत में उसका इम्पोर्ट शुरू हो गया, और उसकी ड्यूटी को स्लेस किया गया, तो अपने देश में पोलट्री इण्डस्ट्री बहुत महत्वपूर्ण इण्डस्ट्री है, तमिलनाडु में, आन्ध्र में और महाराष्ट्र में, उड़ीसा में बड़ी महत्वपूर्ण है पोलट्री इण्डस्ट्री, अब आन्ध्र से रोज कलकत्ता अण्डे नहीं जाऐं, तो कलकत्ता रहेगा ही नहीं, आप पता कर लीजिये रोज हजारों ट्रक अण्डे लेकर निकलते है, तो इसलिए इतनी बड़ी इकोनोमी है, अपने देश में, तो इस इम्पोर्ट ड्यूटी के स्लेस (import duty slashed) करने के कारण और अमेरिका के इस चिकन को इम्पोर्ट करने की नीति को आगे बढ़ाने के कारण हमारा पोलट्री इण्डस्ट्री खतरे में आ गया।
तो उनके समर्थन में हम गये, कार्यक्रम किया और लड़ाई शुरू हो गई, और आखिर हम बचाने में सफल हुए। उनकी तैयारी भी थी, उनका सहयोग भी था, और हम उसके साथ थे, हम साथ थे तो, स्वदेशी जागरण मंच के अलावा कोई और आन्दोलन उनके साथ नहीं था।
इतने बहु-आयामी मुद्दों पर स्वदेशी जागरण मंच ने हाथ डाला है, ऐसे कितने आन्दोलन है? किसी ने कारगिल कम्पनी का मुद्दा उठाया, कोई एक अन्य मुद्दे को पकड़ कर आन्दोलन किया, लेकिन ’इतने सारे मुद्दों की एक श्रृंखला खड़ा करने वाला आन्दोलन, हमने आगे बढाया’।
वैश्वीकरण के अनेक प्रकार के आक्रमण चालु थे। इसी के चलते, इंश्योरेन्स सेक्टर को खोलने की बात शुरू हो गई, तो बीमा क्षेत्र को खोलेंगे, बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश लाएगें, बीमा क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों को लायेंगे। तो लड़ाई शुरू हो गई, इंश्योरेन्स सेक्टर में कम्यूनिस्ट ऑर्गेनाइजेशन है, हम है, सब मिलकर इस लड़ाई को कैसे लड़ना, तो स्वदेशी जागरण मंच ने नेतृत्व किया, हम जितनी सफलता चाहते थे, वह नहीं हुआ, लेकिन उसको रोकने में सफल हुए और जो खोला गया है, 26 प्रतिशत वह पार्लियामेन्ट में रिज्योल्यूशन पास करके खोला गया, दोबारा कुछ बढ़ाना है, तो पार्लियामेन्ट में आना पड़ेगा, ऐसे बहुत सारे पहलु है, इस लड़ाई में, आमना-सामना होने पर कहीं हारे है, कही जीते है, लेकिन बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश के विरूद्ध आन्दोलन का नेतृत्व हमने किया।
इसी क्रम में मीडिया में विदेशी निवेश की बात चली। आप जानते है 1955 केबिनेट डिसिजन के बारे में, पंडित नेहरू के बारे में आप लोग बहुत अखबारों में पढ़ते है कि मीडिया के बारे में, उपनिवेशवाद के बाद भारत की केबिनेट ने यह तय किया था कि ’राइट टू इर्न्फोमेशन’ जो है वह केवल नागरिकों के लिए है, इसलिए अखबार जो है वह प्रोपेगेशन और ’राइट टू इर्न्फोमेशन’ के तहत आता है, इसलिए विदेशी नागरिकों के लिए इस देश में अखबार चलाने का अधिकार नहीं रहेगा। ऐसा उन्होंने तय किया था। अब उसको बदलने के बड़े प्रयास हुए, तो इसके विरोध में लड़ाई को हमने आगे बढ़ाया, लड़ाई चलती रही, कहीं हारे-कहीं जीते और अंत में, 26 प्रतिशत प्रिन्ट मीडिया में आया, लेकिन उसका लाभ यह हुआ, कि बाद में कि भाई, मीडिया यानि केवल प्रिन्ट मीडिया नहीं है, तो फिर अन्त में स्टार चैनल भी स्वदेशी हो गया, सारे विदेशी चैनल स्वदेशी हो गये। क्यों?, क्योंकि टोटल ग्रोस मीडिया जो भी है, उसमें 26 प्रतिशत से ज्यादा कोई हो नहीं सकता। इस लड़ाई को लड़ते रहने के कारण, लगातार दबाव बढ़ाने के कारण, हम अपना पूरा मीडिया जो आज है, जो पचास चैनल आप देखते है, न्यूज का, हर स्टेट का दो-तीन चैनल्स है, उडिया का भी चैनल्स है, तमिल का भी चैनल्स है, तेलगू का भी चैनल्स है, जितने चैनल्स है, टोटल हमारे देश के लोगों के हाथों में है। बिजनेस हमारे देश के लोगों के हाथों में है और सूचना तंत्र भी हमारे देश के लोगों के हाथों में है और इसके अनुभव भी हमारे देश के लोगों के हाथों में है तो वैश्विक स्तर की क्षमताओं को हमने अपने यहां विकसित किया।
उसी प्रकार टेलिकम्यूनिकशन के विषय में हमारी लड़ाई चलती रही। अगर सरकार की मर्जी चलती तो, अगर सरकार का वश चलता तो 100 प्रतिशत विदेशी कम्पनियों को अनुमति होती, शुरू ही 100 प्रतिशत से करते। लेकिन हमने कहा कि टेलिकम्यूनिकेशन में जो रिवोल्यूशन आ रहा है, उसका लाभ देशी उद्योगों को, छोटे उद्योगों को चलाने वालों को मिलना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि अगर वोडाफोन जैसी विदेशी कम्पनियां पहले आ जाती, तो जैसी स्थिति हम रेनबेक्सी के सम्बन्ध में सुन रहे है, जैसी स्थिति हम पेप्सी और कोका कोला की देख रहे है, वैसी स्थिति हम टेलिकम्यूनिकेशन में देखते। तो हमारी लड़ाई के कारण आज आप देखते है कि इण्डियन एन्टरप्रिनर चाहे वह एयरटेल हो, श्याम टेलिलिंक हो, आइडिया हो, रिलायंस हो, टाटा हो, एक इण्डियन कम्पनीज है, इण्डियन एन्टिटि के नाते जम गये और बी.एस.एन.एल. की कहानी तो और है, मैं फिर बताऊंगा।
तो इस प्रकार टेलिकम्यूनिकेशन को देशी हितों के लिए बचाना, इन्श्योरन्स को देशी हितों के लिए बचाना, बीड़ी के विषय में आगे बढ़ाना और जितने मुद्दे है, उन सब पर हम लड़ते गये, लगातार संघर्ष करते गये चेतना यात्रा, संघर्ष यात्रा और मुद्दों को लेकर आन्दोलन, महाधरना, यह सब हम देते गये। ये सब डब्ल्यू.टी.ओ. के विरोध में नहीं है। ये सब आन्तरिक वैश्वीकरण के जितने प्रयास है, ये उनके विरोध में है।
’रूपी कनवर्टीब्लिटी’ के बारे में आज भी लगातार हमारी लड़ाई जारी है, जिसको फाइनेन्शियल ग्लोब्लाइजेशन कहते है, ’रूपी कनवर्टीब्लिटी’ करना आवश्यक है, ऐसा कहते है तो उकमें विरोध में हम लगातार लड़ रहे है।
चारटर्ड एकाउंटेन्ट्स की सर्विसेज के ग्लोब्लाइजेशन के विषय में हमने लड़ाई शुरू की, हमने कन्वेंशन्स किये, दिल्ली में, मुम्बई में, बैंगलूर में, चैन्नई में, हजारो-हजारों चारटर्ड एकाउंटेन्ट्स के हमने कन्वेंशन्स किया, हमारे देश के सी.ए. क्या चाहते है? ’लेवल प्लेइिंग फील्ड’ चाहते है, तो इस प्रकार से एडवोकेट्स के विषय में ग्लोब्लाइजेशन नहीं चल सकता। हमारे एडवोकेट्स को पहले लेवल प्लेइंग फील्ड पर लाओ, इसलिए हमने वहां सर्विस सेक्टर की लड़ाई शुरू की, उनके साथ मिलकर लड़ाई चलाई। ऐसे बहुत से मुद्दे है, इन मुद्दों को हम एक के बाद एक लड़ते गये है। गिनती करते जायेंगे तो इसमें और दस मुद्दें जुड़ेंगे। तो हम इस लड़ाई में आगे बढे।
लेकिन इसमें लड़ाई का एक और पहलू है, वह है ’विनिवेश’, डिसइन्वेस्टमेन्ट, डिसइन्वेस्टमेन्ट चाहे नरसिंह राव की सरकार में, मारूति के सन्दर्भ में, कांग्रेस की सरकार के विरोध में, एन.डी.ए. सरकार के विरोध में, और सारी सरकारों के विरोध में डिसइन्वेस्टमेन्ट का मुद्दा, सैद्धान्तिक पक्ष की बात नहीं है, कि पब्लिक सेक्टर में मोर्डन ब्रेड को हमें चलाना चाहिए या नहीं चलाना चाहिए, मैं इसमें नहीं जाता हॅू लेकिन, हमारे देश की इतनी बड़ी सम्पति है, जमीन है, इतना बड़ा ब्राण्ड है, उसको आप औने-पौने दाम पर बेचकर, पूंजीपतियों को दान कर रहे है। कई जगह एकाधिकार स्थापित करने के लिए, मोनोपोली स्थापित करने के लिए, जैसे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का जो ट्रेड है, उसमें रिलायंस का एकाधिकार स्थापित करने का काम, एन.डी.ए. सरकार के जमाने में हुआ, डिसइन्वेस्टमेन्ट कर दिया, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के ट्रेड में जो कम्पनी है, उनका डिसइन्वेस्टमेन्ट कर दिया, और उसके रहते हुए आज पूरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की, पूरे देश में उसका एकाधिकार है और उसके एकाधिकार के समर्थन में, बड़े अजूबे ढंग से तर्क दिया गया, उस समय के मंत्रालय चलाने वाले लोगों ने। तो हमने विरोध किया, हमने तर्को को सामने लाया, हमने पूरे देश में डिबेट छेड़ दिया और इस बहस का अगर कोई केन्द्र था तो वह स्वदेशी जागरण मंच था।
HPCL,Indian oil,BPCL और अन्य सब में HPCL या BPCL इन दोनो को या इन में से किसी एक को बेचना चाहते थे और इसको विदेशी ’शैल कम्पनी’ या रिलायंस कम्पनी दोनो लेना चाहती थी यानि एक दम धंधा बेचने के जैसा, और उसमें किसी और को फायदा, और जहां आप बेच भी सकते है ऐसे क्षेत्रों में, जहां सिद्धान्त रूप में विरोध नहीं है वहां भी होटल बेचा गया, 31 करोड़ में होटल बेचा, सिद्धान्ततः होटल के डिसइन्वेस्टमेन्ट के हम विरोध में नहीं है, लेकिन देश की सम्पतियों को जिस प्रकार की पद्धत्तियों से बेचा गया, उसके कारण, विनिवेश लगातार हमारी लड़ाई का एक मुद्दा रहा।
बी.एस.एन.एल. को कमजोर करना चाहते थे, डिसइन्वेस्टमेन्ट करना चाहते थे, तो हमने कहा कि ठैछस् को कमजोर करोगे, तो टेलिकोम मार्केट का अभी जो चल रहा है प्रतिस्पर्द्धा, उसमें ग्राहक के हित में,BSNL works as a Interventional supports, Price Stabilization esa Price Control में अगर BSNL नहीं होती, तो इस प्रकार से प्रतिस्पर्द्धा को बनाए रखना सम्भव नहीं है, इसलिए प्रतिस्पर्द्धा में बनाए रखने के लिए भी, एक कम्पनी रहना चाहिए, इस दृष्टि से हमने तर्कों को आगे बढ़ाते हुए, BSNL को मजबूत रखने के लिए जो आवश्यक है वह किया, तो विनिवेश हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और हम लड़ते रहे है।
और नमक के विषय में, आयोडिन नमक ! जहां नमक के विषय को लेकर पूज्य महात्मा गांधी ने लाखों लोगों को साथ लेते हुए आन्दोलन किया, दांडी मार्च किया, उस ’दांडी मार्च’ की शताब्दी समारोह मनाकर सत्ता में आये लोग, सत्ता का सुख भोग रहे लोग, दांडी मार्च इतिहास को भुलाना चाहते है और कहीं ’गॉयटर’ हो रहा है, इस नाम पर कम्पनियों को नमक की कीमतों को अनाप-शनाप बढ़ाने का एकाधिकार दे दिया जाता है। आयोडिन नमक के नाम पर कुछ बड़ी कम्पनियों को नमक के क्षेत्र में एकाधिकार हो गया। आयोडिन नमक की अनिवार्यता का विरोध करते हुए हमने कहा कि आयोडिन नमक के नाम पर बड़ी कम्पनियां अनाप-शनाप मुनाफाखोरी करके लोगों का शोषण कर रही है।
और जिस तरह से आयोडिन नमक के साथ, दिया जा रहा है, उस तरह से यह भारत में चल ही नही सकता, जिस तरह से हम सब्जियों में नमक मिलाते है, उससे आयोडिन का मतलब ही नहीं रहता। ऐसे बहुत सारे तर्को को हमने सामने लाया। डॉक्टर्स, एक्सपर्ट्स को हमने सामने लाया, लड़ाई आगे बढ़ाई और फिर हमने ’दांडी मार्च’ की घोषणा की और कहा कि या तो आप रहेंगे या हम रहेंगे, कार्यक्रम पर कार्यक्रम चलेंगे और एक बार जनता के कार्यक्रम चलेंगे तो आपके नियन्त्रण में नहीं रहेंगे और जब आन्दोलन शुरू हुआ तो फिर सरकार ने निर्णय लिया कि आयोडिन नमक के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा, अनिवार्यता समाप्त करते है।
बाद में फिर सरकार बदली, दूसरी सरकार आयी, तो फिर इस विषय को आगे बढ़ाया क्यों? क्योंकि कॉर्पोरेट इन्ट्रेस्ट जो है, लगातार इसको आगे बढ़ाने में अपनी पूरी ताकत लगाते हैं, तो हम कई मुद्दों पर लड़ते है, आंशिक सफलता प्राप्त करते है, कई मुद्दों पर सफलता प्राप्त करते है, कई मुद्दों पर गति को रोकने में हमें सफलता मिली, तो इस प्रकार से आयोडिन नमक के विषय पर हमने लड़ाई लड़ी।
ये सारे एक अध्याय है, एक आयाम है, तो दूसरी तरफ हम डब्ल्यू.टी.ओ. की लड़ाई पूरे देश में, व्यापक लड़ाई बनाने में, बौद्धिक दृष्टि से, भी बालकृष्ण केला जी, जो कल अपने सामने थे, इस देश में ’इण्टेलेक्चुअल प्रोपर्टी’ राइट्स ऑफ डब्ल्यू.टी.ओ. इस विषय को, लगातार, सारे लड़ने वालों को समृद्ध किया है, बौद्धिक दृष्टि से, तो वह है ’वर्किंग ग्रप ऑन पेटेन्ट्स’ और इस लड़ाई को कभी कोई लिखेंगे तो इसे स्वर्ण अक्षरों से लिखना पड़ेगा, यह एक स्वर्णिम अध्याय है, कि उन्होंने एक अकेले, पहल करते हुए, चार-पांच लोगों को साथ लेकर, हमेशा हर विषय पर बौद्धिक दृष्टि से, सब एम.पी.’ज को, सभी संगठनों को, सभी आन्दोलनों को, फीड, करना, समझाने के लिए जैसे कल आये, कोई शुल्क लिए बगैर, बैंगलोर जाना है, मुम्बई में समझाना है, हैदराबाद में कार्यक्रम में जाना है, साहित्य देना है, हजारों की संख्या में पुस्तकों को बांटना, यह काम वो करते रहे, और इन सभी कार्यों को करने में हम साथ रहे। साथ में, जन-जागरण में हमने अग्रिम भूमिका को निभाया, जितने विश्व व्यापार संगठन के खिलाफ बड़े कार्यक्रम पूरे देश में किये है, हमसे ज्यादा किसी ने नहीं किये। अनेक लोगों ने किये, कई संगठनों ने किये, हम उनके खिलाफ नहीं है, हम उनके साथ है। हमारा समन्वय है, लेकिन किसी एक आन्दोलन ने, इसे लगातार चलाया और जनता में एक जन-दबाव उत्पन्न करने का प्रयास किया, वह हमने किया।
इसमें बहुत अध्याय है, इण्टेलेक्चुअल प्रोपर्टी राइट के सम्बन्ध में हो, सिंगापुर इश्यूज के सम्बन्ध में हो, और दोहा डवल्पमेन्ट राउण्ड के सम्बन्ध में हो, और सियाटेल और कॉनकुन सम्मेलन के फेल्योर के सम्बन्ध में हो ’नो निगोशियेशन्स, वी वॉन्ट रिव्यु ऑफ डब्ल्यू.टी.ओ.’ ’नो न्यू निगोशियेशन्स ऑनली ऑल्ड कण्डीशन हेव टू बी फुलफिल्ड’ इस प्रकार से मुद्दों को समय-समय पर आगे बढ़ाते गये और डब्ल्यू.टी.ओ. अन्तर्विरोधों के कारण रूक गया, उसकी गति मन्द पड़ गई, आज डब्ल्यू.टी.ओ. प्रासांगिक नही रहा, उसमें हमारी भूमिका भारत के सन्दर्भ में कम नहीं है।
इसमें भी कोई हमने संकुचित दायरे में नहीं देखा। हम लड़ाई का नेतृत्व करते गये, लेकिन हमने सबको साथ लिया, अगर कोई और आगे बढ़ रहा है, तो उसको हमने साथ दिया, ’फोरम ऑफ पारलियामेन्ट्रेरियन’ इसको भी बनने में हमने साथ दिया और ’वर्किंग ग्रुप ऑन पब्लिक सेक्टर युनिट’ उसको भी हमने साथ दिया। जो-जो लड़ रहे थे, वे चाहे कम्यूनिज्म से प्रेरित हो, राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हो या अन्य किसी विचार से प्रेरित हो सभी के साथ मिलकर समन्वय करते हुए, इन सारे डब्ल्यू.टी.ओ. मुद्दों को हमने आगे बढ़ाया और धीरे-धीरे हमने अपने प्रतिनिधियों को भी भेजना शुरू किया, केनकुन में अपने प्रतिनिधि गये, हांगकांग में स्वदेशी जागरण मंच के प्रतिनिधि गये, मिनिस्ट्रीयल मीटिंग में, भेजना भी शुरू किया तो इस प्रकार से 15 वर्षों के अन्दर, जिसको आप आन्दोलनों की श्रृंखला कहते हो, इतने आन्दोलन करना, आप देखेंगे कि संगठन में क्षमता और संगठन में सम्भावना देखेंगे तो अभी भी आपकों संदेह हो सकता है, लेकिन हमारी ताकत क्या है? क्यों यह सब कर पाये? तो यहां बैठे हुए है, उस ताकत के कारण नहीं है, तो मुद्दों में जो ताकत है, उसके कारण, ये मुद्दे उठाकर हम आगे बढे तो समाज ने साथ दिया, सम्पूर्ण समाज खड़ा रहा, मछुआरों के विषय में, पशुधन के विषय में, डब्ल्यू.टी.ओ. के विषय में, और बहुत सारे विषयों में।
डब्ल्यू.टी.ओ. के विषय पर हमने रामलीला मैदान पर कितने कार्यक्रम किये? बहुत सारे कार्यक्रम किये और उसी प्रकार ’रिटेल ट्रेड’ रिटेल ट्रेड का मुद्दा आज का नहीं है, एन.डी.ए. सरकार के समय से केवल नहीं है; पहली मनमोहन सिंह की सरकार के समय ’रिटेल ट्रेड’ मुद्दा था और चिदम्बरम उसको आगे बढ़ाना चाहते थे, इसके विरोध में उसी समय से हमारे कार्यक्रम शुरू हुए, महाराष्ट्र में जो ’बेहमा’ संगठन है, उस संगठन के साथ मिलकर हमने समन्वय किया और उनको आगे बढ़ाया, हम सबसे मिलाते गये, और बादमें मनमोहन सिंह भी ओपोजिशन में आये, तो रिटेल ट्रेड के आन्दोलन को सहयोग दिया, बाद में फिर दुबारा सरकार में आये तो फिर सरकार के रूख को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, तो रिटेल ट्रेड के मुद्दे पर भी जो खतरे है, छोटे, फुटकर, खुदरा व्यापारियों पर जो कई खतरे है, उन पर हमने कई सम्मेलन किये।
कई स्थानों पर कई कार्यक्रम किये, और इस प्रकार के आन्दोलन को रिटेल ट्रेड के आन्दोलन को अखिल भारतीय स्तर पर उठाने वाला और चलाने वाला, गैर-खुदरा व्यापारियों का संगठन अगर है, तो वह स्वदेशी जागरण मंच है, गत 10-12 वर्षों से, और आज जो आप देख रहें है, अगर हम आन्दोलन में इस प्रकार सक्रिय नहीं होते, तो यह जो अध्याय आज हम देख रहे है, वह अध्याय तो 10 वर्ष पहले ही शुरू होने वाला था, तो यह लड़ाई भी खुदरा व्यापार के विषय में हम लड़ते आये।
और अब सेज, इसके विषय में भी हम आन्दोलन में है, कार्यक्रम कई किये है, किसानों के मुद्दे पर हमने किसान पंचायतों का कार्यक्रम लेना शुरू किया, अभी इसको, अखिल भारतीय रूप नहीं दिया है, आन्दोलन के नाते, लेकिन उसकी गतिविधियां, कुछ सम्मेलन, बड़े कार्यक्रम हो रहे है, लेकिन यह तय किया है, कि अब केवल अखिल भारतीय योजना और इसके आधार पर ही, मुद्दे पकड़ना, ऐसा नहीं चाहिए, स्थानीय स्तर पर भी नेतृत्व होना चाहिए तो आन्ध्र में हल्दी किसानों का मुद्दा, उस पर आन्दोलन चल रहा है और इस प्रकार गोंडा में, किसानों के जल संसाधनों के लिए वहां पर आन्दोलन चल रहा है, तो इस प्रकार के प्रयास भी शुरू हो गये, ये तो हो गयी आन्दोलनों की श्रृंखला इसमें कुछ और विषय जोड़ सकते है,
15 वर्षो में हमने इतने सारे आन्दोलन खड़े किये, उसके साथ हमने, कुछ, जिसे विधायक कार्य कहते है, किये। विचार वर्गों का आयोजन करते है, राष्ट्रीय सभा, राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन करते है, और सबसे महत्वपूर्ण एक प्रयोग तमिलनाडु में हुआ है, जिसको हमें समझना बहुत आवश्यक है। वह है ’स्वदेशी एकेडमिक कॉंसिल’ के नाम पर वहां के कलस्टर का अध्ययन, देखिये, स्वदेशी इकोनोमी, आज जो हम बाहर से लाना चाहते है, कोई जीवन्त नहीं है, उसको साबित करना चाहते है, ऐसा नहीं है। जो आज भी देश में इतना बड़ा निर्यात होता है, वह अपने देश के कलस्टर्स से हो रहा है, राजकोट का कलस्टर, सूरत का कलस्टर, लुधियाना का कलस्टर, त्रिपुर का कलस्टर, इरोड़ का कलस्टर, मुरादाबाद, अलीगढ, जोधपुर, यहा जो कलस्टर्स है, यही है, अपने देश का निर्यात करने वाले, और विदेशी पूंजी कमाने वाले, और इनके हित में कोई रिफार्म्स नहीं है और यहां पर क्रेडिट के विषय पर कोई नीतियों में परिवर्तन नहीं है, सरकार ने गत 15 वर्षों में रिफार्म्स का मतलब है, फोरेन इन्वेस्टमेन्ट, रिफार्म्स का मतलब है डब्ल्यू.टी.ओ. यह धंधा बनाकर रखा है। इसको हम अध्ययन के आधार पर समाज के सामने लाये कि त्रिपुर पांच हजार करोड, प्रतिवर्ष कमाता कैसे है? छः हजार करोड़ कैसे कमा रहा है? इस प्रकार की कलस्टर स्टडी को, स्वदेशी एकेडमिक कॉन्सिल के माध्यम से सामने लाये।
और 98 में, हमने कहा कि भाई स्वदेशी विकास का कोई मॉडल है क्या, तो ’अभ्युदय’ का क्या होना चाहिए, इस पर हमने एक डॉक्यूमेन्ट (आधार पत्र) बनाया आज भी वह डॉक्यूमेन्ट है, उसको, रिवाइव करना चाहिए, रिव्यू करना चाहिए, अपडेट करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है, कि कोई कहे कि आप लोग ऐसा कैसे सोचते हो? ऐसा कहने पर आप लोगों को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, हमने ’रिबिल्डिंग इण्डिया’ इस प्रकार का एक डॉक्यूमेन्ट बनाया है उसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर के बारे में, फाइनेन्सियल एडमिनिस्ट्रेशन के बारे में, ग्लोब्लाइजेशन के बारे में, वर्डट्रेड के बारे में, और देश के संसाधनों के वितरण के बारे में, सांस्कृतिक व्यवस्था और नीतियों के बारे में, सब उसमें हमने क्लियर किया है, काम किया है, उसमें मेहनत करके, वह हमने किया है और ऐसे कई डाक्यूमेन्ट रूपि कनवर्टीब्लिीटी पर हमने डॉक्यूमेन्ट बनाया और सर्विस सेक्टर के चार्टर्ड एकाउन्टेण्सी पर हमने डॉक्यूमेन्ट बनाया, बहुत सारे डॉक्यूमेन्ट बनाकर प्रकाशित किये है हमने समय-समय पर।
और इसके अलावा एक महत्वपूर्ण आयाम है आप लोगों को भी ध्यान में है, इस देश में गत सात-आठ वर्षों के अन्दर, सम्पूर्ण देश में, लगभग 110 से ज्यादा स्वदेशी मेले किये, और मेला यानी कोई छोटा-मोटा रचनात्मक कार्यक्रम नहीं है, हर मेले में 4 लाख लोग, 5 लाख लोग, मुम्बई में 15 लाख लोग, सात दिन में मेले में आना और, उसमें परिचर्चा, संगोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, खरीददारी, यह सब मिश्रण करते हुए भारतीय उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए, सम्पूर्ण देश में 110 मेले सात वर्षों में किये, अगर हम संस्था होते तो, नहीं कर सकते थे। हम आन्दोलन है, इसलिए हम कर पाये। इसलिए इन मेलों के माध्यम से, हमारे पूरे देश में, बहुत सारे लोगों में, स्वदेशी आन्दोलन के बारे में एक विश्वास, बडे स्केल पर काम करने का लोगों का, कार्यकर्ताओं का अनुभव सब मिला।
और इसके साथ, आप जानते है, इस आन्दोलन को, पुष्ट करने के लिए कार्यकर्ताओं के जागरण करने के लिए, हर बार कुछ न कुछ समाचार मिलना चाहिए, इस दृष्टि से, हमारी स्वदेशी पत्रिका भी प्रकाशित होती है, जिस दिन से हमने शुरू किया अंग्रेजी और हिन्दी में, कभी बन्द नहीं हुआ। हर महीने, कार्यकर्ताओं के जागरण के लिए तमिलनाडु में, ’स्वदेशी संस्कृति’ के नाम से तमिल भाषा में एक बढिया स्तर की पत्रिका निकाल रहे है।
तो इस प्रकार के प्रकाशनों की और भी हमने ध्यान दिया, तो मेरा कहना है कि ऐसी कई बाते एक बार, मुझे लगता है कि यह भी एक पुस्तिका बन सकता है। अब आने वाले दिनों में, अब इस आन्दोलन को अगर सफल बनाना है, निर्णायात्मक बनाना है, तो जागरण और संगोष्ठी से हम एक सीमित मात्रा में ही परिवर्तन ला सकते है, स्थानीय मुद्दों को पहचानना, स्थानीय मुद्दों के आधार पर जन आन्दोलन, स्थानीय स्तर पर खड़ा करना, और उस आन्दोलन के माध्यम से स्थानीय नेतृत्व को विकसित करना और स्थापित करना, ये हमारा ठोस आयाम और पहल होना चाहिए, इसके लिए आने वालें, दिनो में, क्योंकि वैश्विकरण, देश के बाहर जाकर, लन्दन में या जिनेवा में लड़ने वाला विषय नहीं है, हर मोर्चे पर लड़ना पड़ेगा, हर गांव में लड़ना पडेगा, इसलिए एक बात ध्यान में रखिये कि नये नेतृत्व का निर्माण हमेशा, पुराना नेतृत्व कभी भी समाज में, चाहे वह राजनैतिक दृष्टि से हो या सामाजिक दृष्टि से हो, वह आपको माला डालकर स्वागत् करेगा और स्वार्थ की जो …. फोर्सेज है लीडर’स है वह आपको बुलाकर के कुर्सी पर बैठाकर के स्वागत करेंगे, ऐसा होता नहीं है। ऐसा कभी नहीं होता है।
हमें मुद्दों के आधार पर नये नेतृत्व को विकसित करना और स्थापित करना, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है, लोगों की स्वीकार्यता इससे ही बनेगी, इसलिए संस्थागत परिवेश जो, पहले कभी हमारा रहा हो, उससे मुझे लगता है, छुटकारा पाना चाहिए, आन्दोलन को जनता की ताकत पर ही निर्माण कर सकते है, लड़ सकते है, कैडर्स है तो वही है, हम कोई जनरल केडर, जैसे कि बायलोजी में, होता है, एक सेल होता है, उसमें ’माइटोकॉण्ड्रिया’ एक पार्ट होता है, उसे पॉवर हाउस माना जाता है, तो ऐसा है कि आप एक जगह पर निर्माण करके, संगठित करके रखेंगे और उसको इस.ई.जेड. के खिलाफ भी उपयोग करेंगे, फिर रिटेल ट्रेड के लिए भी उपयोग करेंगे, और सारा केडर है, आपका, एक बेरेक में है और उस बेरेक के गेट खोलते ही, वो जहां कहेंगे, वहां पहुंचेंगे। यहां पहुंचेंगे, वहां पहुंचेगे, ऐसा सोचेंगे, तो ऐसा सोचेंगे तो इसका अर्थ है, आपको कि आन्दोलन का अनुभव नहीं है, आन्दोलन के लिए, जो कार्यकर्ता आपको चाहिए वह, तपते हुए कार्यक्रमों के माध्यम से, उसी जमीन से निकलता है। उस जमीन से, या उस मुद्दे से, जो व्यक्ति या समुह, जुड़ा हुआ नहीं है, वह व्यक्ति केडर नहीं बन सकता, इसलिए मेरा मानना है कि अगर आपने आन्दोलन को आगे बढ़ाना है, तो इस पहलू पर हमें आने वाले समय में ध्यान देना चाहिए और अन्त में जैसा कि मैं ऐसे कार्यक्रमों में कहता हॅू तो मुझे श्रद्धेय दत्तोपंतजी की याद आती है, यहां बैठे अधिकाश लोग संघ के परिवेश से आये हुए स्वयंसेवक है, हम भी आप भी, ऐसे अधिकांश लोग है, तो इसी सन्दर्भ में कहते है कि हम सब लोगों को, संघ सेे किसी ने कहा है, इसलिए स्वदेशी का काम कर रहे है, यह भी है, योजना में तय हुआ है, इसलिए स्वदेशी का काम कर रहे है, यह भी है, हो सकता है, हमारा रूचि है, इसलिए हमने योजना बनवाया, यह भी हो सकता है, और दोनो भी हो सकते है, लेकिन इस सन्दर्भ में एक बात ध्यान रखना, कि श्रद्धेय दत्तोपन्तजी कहते थे, कि ’जैसे कोई बालक है, जब नया कदम बढ़ाता है, तो गिरता रहता है, इसलिए जो पिता है, या माता है, वह अंगुली पकड़वा कर चलाते है, उनका अंगुली पकड़ाने का उद्देश्य होता है, चलने का प्रशिक्षण देना, उनका उद्देश्य यह नहीं है कि वो चलायेंगे।’ ऐसा उनका उद्देश्य नहीं है, इसलिए ऐसे ’चतुर बालक’ मत बनिये कि अंगुली पकड़ा कर वह चला रहें है तो आप उनका हाथ पकड़ना शुरू कर दें। तो इतनी चतुराई नहीं करनी चाहिए, यानि क्या है? मैं नहीं कह रहा हॅू, ’इन्टरप्रिटेशन’ वह भी दत्तोपन्त जी ने कहा है, यानि क्या है? आपको दिया है, यानि आगे काम बढ़ाना है, तो फिर जाकर संघ कार्यालय में बैठ गया, आपने मुझे दिया, जिला लेवल पर दिया, विभाग लेवल पर दिया, प्रान्त लेवल पर दिया, तो अब काम बढ़ाना है, तो अब आपका काम है कि मुझे जिला लेवल पर लोगों को दो, नगर के लेवल पर लोगों को दो, गांव के स्तर पर लोगों को दो, फिर वर्ग के लिए स्थान दो, फिर वर्ग के लिए व्यवस्थाऐं दो, धरना हम देना चाहते है तो उसके लिए धन की व्यवस्था करो, फिर टेन्ट कौन लाएगा बोलो, यानि यह प्रशिक्षण के लिए आपकी अंगुली नहीं पकड़ते है।
इसलिए जो काम हमको मिला है, उसको बड़ी सफलता से, बड़े साहस के साथ करना चाहिए, इसलिए समाज में जाना है समाज में जाकर इस लड़ाई को लड़ना है तो, वहां पर जो लड़ने वाले लोग है, उनके साथ हमको एक हो जाना चाहिए।
इस प्रकार का अभ्यास नहीं होने के कारण, कई बार बड़ा भय लगता है, लेकिन इसमें चिन्ता करने की कोई बात नहीं है।
अगर आप मुद्दों के आधार पर जाओंगे और एक आन्दोलन या एक पद यात्रा करके जब वापिस आओगे तो आप पाओगे कि अब आप वो नहीं है जो आप चार दिन पहले थे, चार दिन पहले आपको मोहल्ले में नहीं पहचानते थे, गली में नहीं पहचानते थे, लेकिन एक पद यात्रा करते ही, आपको पूरे शहर के खुदरा व्यापारी पहचानने लगेंगे कि यह हमारा आदमी है, क्यों? क्योंकि यह हमारी लड़ाई लड़ रहा है। एक किसान पंचायत करके या धरना देकर आओगे तो सारे किसान अखबार से पढ़कर समझेंगे, अच्छा यह हमारा आदमी है, यानि आपके नाम से उसको लगेगा, वह भले आपसे मिले, ना मिले, यह हमारा आदमी है, इसलिए आप डायनेमो के साथ कनेक्ट करने का प्रयास करिये।
तो मेरा मानना है कि इस वर्ग से, दो बाते मैं कहूंगा एक तो यह और दूसरा कम से कम एक निर्णय करके जाइए, जो वर्ग यहां के कार्यकर्ताओं ने, इतना प्रयास करके वास्तव में, गूजर आन्दोलन के चलते, वर्ग जयपुर में होना था। वह स्थगित करना पड़ा। तत्काल सूचना के आधार पर यह वर्ग यहां ….. एक निर्णय लेकर जाना चाहिए ’इकाई का वर्ग करना है, ऐसा मत सोचिये, एक वर्ग करना है, ऐसा तय करीये,’ इकाई का यानि मैं जिस शहर मे हूं, उस शहर का वर्ग ऐसा मत सेाचिऐ, अब वो, भूल जाइऐ, आप जो लोग आ सकते है, 15 लोग, 20 लोग, 100 लोग एक दिन का, डेढ़ दिन का वर्ग करिये, उसका नाम इकाई का वर्ग होना चाहिए, जरूरी नहीं है, उसमें आने वाले कौन है, तय होना जरूरी नहीं है, सारे शिक्षकों के वर्ग है, करो, महिलाओं का वर्ग है, करों, सब मिलाकर वर्ग है, करो, दिल्ली में आप बात करिये कौन आ सकता है, यह तय कर लीजिए और आप निश्चित होकर एक वर्ग करिये, कम से कम हम जहां है, एक वर्ग करेंगे। वहां एक दिन का वर्ग करेंगे, ऐसा कुछ निर्णय करके जायें।
॥भारत माता की जय॥
स्वदेशी की विकास यात्रा-आन्दोलन और अभियान – मा० मुरलीधर राव |