मेरी कामना – दत्तोपंत ठेंगड़ी || Meri Kamana – Dattopant thengadi
सुनता और पढ़ता आया हूँ कि इच्छाएं ‘इत्यलम’ कहना नहीं जानती और चाहों का चक्र कभी नहीं थमता । मगर मैं तो कामनाओं के वृत्त में ‘दौड़ने का रसिक हूँ । पाने का अपना आनन्द होता होगा, किन्तु चाहने का सुख भी छोटा नहीं है, यदि चाह छोटी न हो । इसलिए चाहता हूँ ।
मनुष्य को पंगु और बौना बनाने वाली गरीबी मिटे,
जीविका के लिए जीवन रेहन न रखना पड़े,
रोटी इन्सान को न खाये ।।
मशीनें श्रम की कठोरता को घटायें,
उत्पादकता को बढ़ायें,
मगर वे श्रम का अवसर न छीनें,
न आदमी को अपना पुर्जा बना पायें ।।
पृथ्वी का दोहन विवेक पूर्वक हो,
प्रकृति से द्रोह न किया जाये ।।
दरिद्रता, दैन्य व अत्याचार को मिटाने का वीरावेश भड़के,
परन्तु क्रूरता बहादुरी का मुखौटा पहनकर न घूमे।।
समाज और व्यक्ति राष्ट्र और विश्व में परस्पराश्रय हो,
परस्पर विरोध नहीं ।।
धनी-निर्धन, विद्वान-अनपढ़ और
शासक-शोषित का द्वैत मिटकर अद्वैत उभरे।।
सुख विलासिता का,
सादगी रसहीनता और मनहूसियत का,
तप वर्जनाओं का,
कला कृत्रिमता का पर्यायवाची न बने ।।
सत्य संख्या में न दब जाये,
सौन्दर्य अलंकरण में न छिप जाये,
विज्ञान हिंसा का दास न हो ।।
जीवन और जगत् पर प्रकाश, आनन्द और करुणा का राज्य हो ।।
इन चाहों के चक्कर में मैं युग-युग भटकने को तैयार हूँ ।
दत्तोपंत ठेंगड़ी
साभार संदर्भ |
साभार – दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन-दर्शन |
2 Comments
पूजनीय ठेंगडी जी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को प्रकट करने वाली अत्यंत भावपूर्ण कविता
आपका बहुत आभार, कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन करने केलिये ,जो आज कल दुर्लभ हो गय है !